ब्राह्मी लिपि का उद्भव :- एक विश्लेषण
सभ्यता की प्रगति में लेखन कला का
अभूतपूर्व योगदान है । मानव समाज को नई दिशा देने में लिपि का अविष्कार बहुत
महत्वपूर्ण है । इसी के कारण मनुष्य के लिए यह संभव हो सका है कि वह अपने ज्ञान का
सर्जन, संरक्षण और संवर्धन
करता रहे,
अपने अनुभवों, विचारों और कल्पनाओं को
मूर्त एवं स्थायी रूप दे सके । जिस तरह से लेखन की परम्परा की शुरुआत हुई, उस शुरुआत का इतिहास बहुत
महत्वपूर्ण है । लिपि मनुष्य का एक महान अविष्कार है । जब से पुराने लेख मिलते है
तब से मानव इतिहास के शुरुआत माना जाता है । मुख्यतः पुराने लेखों के आधार पर ही
प्रामाणिक इतिहास की रचना की जाती हैं।
पुरातनकाल में हमारे देश में इतिहास
के ग्रंथ कम लिखे गए या जो लिखे गए उनमें आमूल-चूल परिवर्तन करके नष्ट कर दिया गया, किन्तु फिर भी हमारे देश
में अनेक ऐसे पुरालेख मिले हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत का इतिहास
गौरवशाली व महत्वपूर्ण था । जो यह दर्शाता है कि हमारी इस भारत भूमि पर अनेक ऐसे
ऐतिहासिक महामानवों ने जन्म लिया था। तथा उनके द्वारा अनेक ऐसे कार्य किए गए, जो इतिहास के पन्नो में
स्वर्णिम अक्षरों से लिखे गए । इसी कार्य में लिपि का अविष्कार एक बहुत बड़ी खोज है
। जिससे व्यक्ति ने अपनी बातों को दीर्घकालीन समय तक दूसरी पीढ़ीयों तक
हस्तांतरित किया । ब्राह्मी लिपि को वर्तमान समय में हमारे समक्ष प्रकट
करने का श्रेय अंग्रेज़ अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने 1837 ई. को जाता है । उन्होंने
ही सर्वप्रथम ‘साँची
के स्तूप’ पर
अंकित ब्राह्मी अक्षरों में ‘
दानं ’ शब्द को पढ़ा तथा इसी
शब्द के आधार पर जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि कि वर्णमाला तैयार की । इसलिए
हमें अंग्रेज़ अधिकारियों का शुक्रगुजार होना चाहिए । जिनकी अथक मेहनत परिश्रम से हम हमारी राष्ट्रीय
विरासत से रूबरू हो पाये ।
ब्राह्मी
लिपि :-
भारतीय ऐतिहासिक परम्पराओं में
ब्राह्मी के उद्भव का मुख्य कारण यह माना जाता है कि उत्तर-वैदिक काल के मुख्य
देवता ब्रह्मा के द्वारा इस लिपि को आविष्कृत किया गया । ब्राह्मी लिपि की
उत्पति को लेकर अनेक विद्वानों में मतभेद है । कोई विद्वान इसे भारतीय उत्पति कहता
है तो कोई विद्वान इसे विदेशी लिपि सिद्ध करने का प्रयास करते हैं । ब्राह्मी लिपि
उत्पति के मुख्य उद्गम स्थल निम्न है ।
I.
स्वदेशी उत्पति के पोषक
सिद्धान्त ।
II.
विदेशी उत्पति के पोषक
सिद्धान्त ।
स्वदेशी उत्पति के पोषक सिद्धान्त :-
इस सिद्धान्त के
अंतर्गत भारतीय विद्वानों ने ब्राह्मी लिपि को भारतीय मूल की सिद्ध करने का प्रयास
किया हैं । विश्व की सम्पूर्ण लिपियों का अध्ययन करने पर हम इस निष्कर्ष पर
पहुँचते है कि लिपि का अविष्कारकर्ता मिथक बनाकर किसी देवता के आधार पर जोड़ दिया
गया । इसी प्रकार भारतीय परंपरा में “ ब्राह्मी लिपि ” को
ब्रह्मा से जोड़ा गया कि ब्रह्मा ने ही इस लिपि की खोज की उसी के नाम के आधार पर
इसका नाम ‘ब्राह्मी’ पड़ा ।
बौद्ध धर्म ग्रंथ “ ललित विस्तर ” में 64 लिपियों का वर्णन
मिलता है उसमें प्रथम लिपि में ब्राह्मी का उल्लेख हैं । इसी प्रकार जैन ग्रंथ “ समवायांग सूत्र ” में उल्लेख है कि आदिनाथ ने अपनी पुत्री को पढ़ाने के
लिए लिपि का अविष्कार किया था,
उनकी पुत्री का नाम ‘
बम्भी ” था और उसी के नाम के आधार पर ब्राह्मी का नामकरण हुआ ।
ब्राह्मी लिपि को स्वदेशी सिद्ध करने की अनेक विद्वानों ने
पुरजोर कोशिश की हैं ।
इस लिपि के स्वदेशी होने के लिए लासेन एवं
एडवर्ड थॉमस ने ब्राह्मी की उत्पति का श्रेय द्रविड़ों को दिया है । द्रविड़ प्रजाति
आर्यों के भारत आक्रमण से पूर्व भारत में निवास करते थे, और इस द्रविड़ों की स्थिति
काफी अच्छी थी । वे आर्यों से काफी उन्नत अवस्था में थे । इस समृद्धाव्स्था के
कारण अपनी सभ्यता के इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए लिपि का अविष्कार किया ।
किन्तु यह बात भी स्पष्ट नहीं होती क्योंकि भारतीय द्रविड़ जातियाँ दक्षिण भारत में
निवास करती थी तथा आर्यों का मूल स्थान उत्तर भारत था । तथा द्रविड़ों की मूल भाषा
तमिल थी । इसलिए यह तर्क करना स्पष्ट रूप से सही प्रतीत नहीं होता है ।
भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक कनिंघम ने भी लिपि के
बारे में अपनी राय दी है । उन्होंने बताया कि ब्राह्मी लिपि का उद्भव लिपि का
प्रारंभिक स्वरूप चित्र लिपि से संभवतया हुआ होगा,
क्योंकि ब्राह्मी अक्षरों के प्रत्येक समूह का नाम मानव शरीर के विभिन्न अंगों के
नाम पर रखा गया । जो आरंभ में चित्र प्रतीक का चित्रण करते थे । किन्तु वे इस बात
का समर्थन करते है कि ब्राह्मी लिपि का जन्म भारत में हुआ किन्तु साथ ही वे यह
स्वीकारते है कि भारतीयों ने लिपि कि योजना मिस्त्रवासियों से अवश्य ली होंगी ।
जॉन डाऊसन ब्राह्मी लिपि को भारतीय लिपि मानते है । इस स्थान
पर वे अपना तर्क देते है,
कि इस लिपि की उत्पति गंगा नदी के तटवर्ती क्षेत्रों में हुई तथा इसी स्थान से
इसका चहुंमुखी विकास हुआ,
यह लिपि विशेषताओं से परिपूर्ण होने के कारण यह विश्व में अपना विशेष स्थान रखती
है । इस लिपि की खास विशेषता यह थी कि यह दोनों तरफ से लिखी जाती थी ।
“ डॉ. जगमोहन वर्मा ब्राह्मी
लिपि को वैदिक चित्र लिपि या उससे मिलती-जुलती हुई ‘सांकेतिक-लिपि’ बताते है । ”
विदेशी उत्पति के सिद्धान्त :-
ब्राह्मी लिपि
की उत्पति को कई सारे विद्वानों ने विदेशी लिपि पर आधारित माना है । उन्होंने अपने
तर्कों के माध्यम से ब्राह्मी को विदेशी लिपि के समन्वय से उत्पन्न माना है ।
I.
यूनानी
उत्पत्ति :-
II.
सेमेटिक
मूल से उत्पति :-
1.
यूनानी
उत्पत्ति :-
ब्राह्मी लिपि की उत्पति के बारे में
कुछ यूरोपीय विद्वानों का विचार है कि ब्राह्मी की उत्पत्ति यूनानी वर्णो से हुई
है । मूलर, सेनार्ट,
प्रिंसेप और विल्सन ने अपने तर्कों के माध्यम से ब्राह्मी को विदेशी लिपि स्वीकार
करने पर तर्क दिया है । इन विद्वानों द्वारा ऐसी संभावना व्यक्त की गई कि भारत पर
आक्रमण होने के पश्चात लोगों का संस्कृतिकरण होने के पश्चात भारतीयों ने लिपि
ज्ञान सीखा और यह लिपि ज्ञान यूनानियों से संबंधित था यह तर्क पूरी तरह से कसौटी
पर खरा नहीं उतरता हैं । क्योंकि भारत तथा यूनान के संबंध सिकंदर के आक्रमण से
पूर्व लिपि ज्ञान से परिचित थे ।
एक दूसरा तर्क कि फोनेशियन व्यापारियों
द्वारा यह लिपि भारत में आई किन्तु यह बात भी ज्यादा प्रामाणिक नहीं प्रतीत होती
है , क्योंकि फोनेशियन लोग भारतीय मूल के ही थे । ऋग्वेद
में उन्हें ‘
पणि ’(भारतीय आदिवासी ) कहा गया हैं। और ये व्यापार करते हुए
भूमध्य सागर के तट पर बस गये थे । और इसी स्थान पर उन्होंने अपनी लिपि का विकास
किया । उसके पश्चात जब यूनानियों ने भारत पर आक्रमण किया तो यूनानियों ने उन
फोनेशियन लोगों से लिपि ज्ञान लिया तथा उसके पश्चात यूनानियों ने भारतीय लोगों को
लिपि ज्ञान सिखाया हो ।
2.
सेमेटिक
मूल :-
सन 1806
ई. में सर विलियम जोन्स ने ब्राह्मी की उत्पति के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, उन्होंने ब्राह्मी लिपि को सेमेटिक मूल से विकसित
लिपि माना, किन्तु सेमेटिक मूल को लेकर विद्वानों के विचारों में
असमानताएँ हैं। सेमेटिक मूल को निम्न भागों में विभक्त किया गया हैं।
i.
उत्तरी सेमेटिक मूल :-
इस मत को सर्वप्रथम व्यक्त करने का
श्रेय मुख्यतः डॉ. बूलर को जाता है । बूलर महोदय ने आगे स्पष्टीकरण दिया है । “
सीधे प्राचीन उत्तरी सेमेटिक वर्णों से जिनका फोनेशिया से लेकर मेसोपोटामिया तक
समान रूप दिखलाई देता हैं ।”
‘ पाल गोल्डस्मिथ ’ का मत है की ब्राह्मी लिपि फिनिशियन से निकली, उनके अनुसार फिनिशियन से लंका लिपि के वर्ण निकले और
उन्हीं वर्णों के अनुसार ब्राह्मी लिपि का जन्म हुआ ।
‘
बर्नेल ’ का मत है कि फिनिशियन से अरमाइक लिपि तथा इससे
ब्राह्मी लिपि का जन्म हुआ ।
ii.
दक्षिण सेमेटिक :-
टेलर, ड़ीक और कैनन महोदय ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति दक्षिण
सेमेटिक मूल से मानते है । किन्तु भारत और भूमध्य सागर के मध्य में अरब सागर की
स्थिति होने के कारण भारत और अरब के सम्बन्धों को माना जा सकता है किन्तु भारत पर
इस्लाम आक्रमण से पूर्व भारत अरब संबंधों की बात स्पष्ट नहीं हो पाती है, इस प्रकार यह मत भी उचित नहीं मालूम पड़ता है ।
iii.
फोनेशियन मूल से उत्पत्ति :-
ब्राह्मी लिपि तथा फोनेशियन वर्णों के कुछेक वर्णों में साम्यता नज़र
आती है जैसे ट, थ, ठ, झ, क, और ग वर्णों में थोड़ी साम्यता नज़र आती है ।
किन्तु जिस समय भारत में ब्राह्मी लिपि उद्भूत हुई उस समय हमें भारत और फ़िनीशिया
के लोगों के संबंधो का साक्ष्य हमें नहीं मिलता हैं ।
भाषा तथा लिपि के प्रसिद्ध विद्वानों की
महत्वपूर्ण खोजों एवं अनवरत चलने वाले शोध से भी स्पष्ट नहीं हो पाया है किन्तु यह
बात स्पष्ट होती है कि ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति भारत में हुई,
तथा भारतीयों ने इसे अपनी अवश्यकता के अनुसार जन्म दिया । विश्व की सभी लिपियों के
अविष्कार के पीछे कुछ मिथक जोड़कर उसे स्थायियत्व प्रदान करने की कोशिश की गई थी,
किन्तु हम यह जानते है कि लिपि का अविष्कार अपने आप में एक बहुत बड़ी श्रेष्ठता
रखता है । अपने विचारों तथा भावों को लिखित स्वरूप प्रदान करने में लिपि का बहुत
महत्वपूर्ण योगदान होता हैं । संभवतया लिपि का अविष्कार अपने आप में महत्वपूर्ण था
और कोई इसे नष्ट न कर दे या इसका विकास चरमसीमा पर हो इसलिए इसके पीछे ब्रह्मा का मिथक जोड़ा गया ।
इस
प्रकार हम अपनी कल्पना कि समझ को थोड़ा बढ़ाकर सभी बातों को अपने तर्क की कसौटी पर
रखकर उतारेंगे तो स्पष्टतया यह बात हमारे समक्ष उजागर होगी कि लिपि का संज्ञान
भारतीयों को था और उन्होंने ही लिपि का
अविष्कार किया, विदेशी लिपि से इसका संबंध जोड़ना प्रायः निरर्थक प्रतीत
होता है ।
गोविंद कुमार मीना
M.A बौद्ध अध्ययन
MGAHV WARDHA
संदर्भ – सूची
1)
पाण्डेय
राजबली – भारतीय पुरालिपि (2004) लोकभारती प्रकाशन 25-A, महात्मा गांधी मार्ग,
इलाहाबाद -1
2)
मुले
गुणाकर- भारतीय लिपियों की कहानी (1974) राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली
3)
मुले
गुणाकर – अक्षर बोलते हैं , (2005) यात्री प्रकाशन दिल्ली – 110094
4)
मिश्र
नरेश – नागरी लिपि (1999) मोनू प्रकाशन
दिल्ली, 110032
शानदार
ReplyDeleteexcellent
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteअतिसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteBahut ache se samajhaya gya hai
ReplyDeleteसमीचीन कार्य,,,
ReplyDeleteआप सभी का आभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तथा उपयोगी.. धन्यवाद|
ReplyDeleteEmperor Casino - Shootercasino
ReplyDeleteThe Emperor casino 메리트 카지노 is one of the newest, most popular and popular in the industry. Play 제왕카지노 all the favourite casino games 바카라 for free or real money. We have over 2000 games